निरुपमा की हत्या को लेकर पिछले चार दिनो से जारी मीडिया ट्रायल को देख कर लगता हैं कि मीडिया बीते वारदातो से सबक लेने को तैयार नही हैं।इन्हे लगता ही नही हैं कि देश में एक कानून हैं जिससे उपर कोई नही हैं ।जिस तरीके से मीडिया इन दिनो एक्ट कर रही हैं कोई एक व्यक्ति कोर्ट चला गया तो मीडिया का वो हाल होगा जिसकी कल्पना नही की जा सकती हैं।इन्हे लगता ही नही हैं कि इस देश में जो अधिकार एक व्यक्ति को प्राप्त हैं वह अधिकार भी मीडिया को प्राप्त नही हैं।कब तक जनता के हीत के सहारे गैर कानूनी कार्य करते रहेगे।अब तो सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक प्रावधानो को अहमियत देते हुए पोलोग्राफी,नार्गो टेस्ट और ब्रेन मैंपिंग टेस्ट को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया हैं।
निरुपमा के मामले में आंनर किलिंग तो फिर पिता की पाती जैसे शीर्षक को लेकर पिछले कई दिनो से चैंनल और अखबार वाले खबर लिख रहे हैं।खबर का ऐगिल आरुषि,अलीगंढ के प्रोफेसर मामले और भोपाल के स्कूल शिक्षका से जुड़े मामलो की तरह ही एक ही धर्रा पर चल रहा हैं।जिस तरीके से निरुपमा के तथा कथित प्रेमी को आधुनिक भारत के प्रणेता के रुप में मीडिया दिखा रही हैं और कोई विशेष साक्ष्य आये बगैर पूरे मामलो में जिस तरीके से निरुपमा के परिवार वाले को टारगेट किया जा रहा हैं वह बेहद शर्मनाक हैं।
इस मामले को मैं भी काफी करीब देख रहा हू और पोस्टमार्टम रिपोर्ट और लाश के पंचनामा को लेकर जो सवाल अब मीडिया सामने ला रही हैं उसकी खोज मैने ही किया हैं।इस मामले में मीडिया को पार्टी नही बननी चाहिए कई ऐसे विन्दु हैं जिस पर निरुपमा के दोस्त प्रियभांशु रंजन की भूमिका संदिग्ध जान पर रही हैं।अगर मीडिया अपने को जनता का पंक्षधर मानती हैं तो दोनो पंक्ष को सामने लाना चाहिए।मेरा मानना हैं कि निरुपमा की मां जो आज जेल में हैं इसके लिए पूरी तौर पर मीडिया जबावदेह हैं हो सकता हैं मां और मामा ने मिलकर निरुपमा की हत्या की हो लेकिन पुलिस के पास फिलहाल कोई ऐसा साक्ष्य नही हैं। जिससे पूरी तौर पर मां और मामा के द्वारा कांड किये जाने की बात सिद्द होती हो।मामले के नैतिक पंक्ष पर मेरा कुछ भी नही कहना हैं।
निरुपमा की हत्या हुई हैं या फिर निरुपमा ने आत्महत्या की हैं यह पूरी तौर पर साबित नही हो सका हैं।यू कहे तो जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उसके आधार पर सौ प्रतिशत हत्या की बात नही कही जा सकती हैं।जिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर निरुपमा की हत्या की बात कही जा रही हैं उसमें भारी चुक हुई हैं या यू कहे तो पूरा पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही संदेह के घेरे में हैं। मौंत का समय किसी भी पोस्टमार्टम का मुख्य आधार होता हैं लेकिन उस पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौंत का समय अंकित नही हैं।दूसरा पहलू हैं शरीर पर कही भी कोई इनजुरी नही हैं जबकि डाक्टर कहते हैं कि दो तीन लोग इसको जबरन पकड़कर तकिया से मुह बंदकर मारा हैं।ऐसे मामलो में भेसरा का रखना जरुरी होता हैं।लेकिन भेसरा सुरक्षित नही रखा गया वही दूसरी और जब पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड कर रही हैं तो पूरे पोस्टमार्टम का वीडियोग्राफी क्यो नही कराया गया।और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिस पुलिस अधिकारी ने लाश का पंचनामा तैयारी किया था उसने जो लिखा हैं उसमें गर्दन में जो चिन्ह दिखाया हैं वह नीचे से उपर की और दिखाया गया हैं जो आत्महत्या की और इंकित करता हैं।और इससे भी अहम सवाल यह हैं कि जब डाक्टर को पोस्टमार्टम टेबल पर ही हत्या के साक्ष्य मिल गये तो तत्तकाल पुलिस को इसकी सूचना क्यो नही दी ।जब आपने पाया कि निरुपमा गर्भवती हैं तो उस साक्ष्य को क्यो नही रखा।वही आप यह भी लिखते हैं कि हत्या करने के बाद उसे पंखे से लटकाया गया हैं तो ऐसे हलात में हायड बोन को आपने सुरक्षित क्यो नही रखा।हो सकता हैं कि यह महज मानवीय भूल हो लेकिन इसका लाभ किसको मिला।निरुपमा के मा मामा,पिता और भाई तो जांच के दायरे में हैं ही लेकिन इस फाईडिंग से सबसे बड़ा लाभ प्रियभांशु को मिला हैं।जो आज चीख चीखकर न्याय की गुहार लगा रहा हैं।अब जरा आप एक औऱ पहलु के बारे में जान ले।निरुपमा की मौंत 29तारीख के 10बजे तब प्रकाश में आया जब उसके आस परोड़ के लोगो उसे उठाकर अस्पताल ले गये जहां डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।11बजे प्रियभांशु का फोन कोडरमा के एसपी के पास आता हैं कि निरुपमा की हत्या की गयी हैं।उसके घर वालो ने ही हत्या की हैं।इस फोन के बाद पुलिस पहुचती हैं औऱ उसके मां से बयान लेने के बाद चली जाती हैं कि कल तक उसके पिता और भाई पहुंच रहे हैं।लाश निरुपमा के घर पर ही रखा रहा ।इस बीच प्रियभांशु के दोस्त अमित कर्ण और हिमांशु शेखर कोडरमा के पत्रकारो को इस मामले के बारे में फोन पर फोन करने लगा औऱ इन दोनो का एक ही सवाल था कि निरुपमा के परिवार वाले दिल्ली से इस मामले को तो नही जोड़ रहे हैं।इसके बाद मीडिया वाले निरुपमा के घर पहुंच कर प्रेम प्रसंग से लेकर कई तरह के सवाल किये लेकिन उसके परिवार वाले कुछ भी बोलने को तैयार नही था।बात बनती नही देख इन लड़को ने कांलेज संगठन के पैड पर लिखकर एसपी कोडरमा और सिविल सर्जन कोडरमा को फैक्स कर निरुपमा की हत्या की आशंका जताते हुए मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने का आग्रह किया।उसी आधार पर निरुपमा का पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड से कराया गया।इस पूरे मामले में जो अहम सवाल हैं वह हैं कि प्रियभांशु को निरुपमा की हत्या की जानकारी एक घंटे के अंदर कैसे हो गयी जबकि इसकी खबर स्थानीय मीडिया तक को नही थी।दूसरी बात निरुपमा के दिल्ली स्थित आवास से सारा समान को आनन फानन में उसके दोस्तो ने क्यो हटाया।इन तमाम बिन्दु पर कोडरमा एसपी प्रियभांशु से पिछले तीन दिनो से जाबव मांग रहे हैं लेकिन वह जबाव देने से बचता रहा जिसके कारण पुलिस को पुछताछ के लिए दिल्ली जाना पड़ा हैं।ऐसे कई और विन्दु हैं जिस पर संघन जांच की जरुरत हैं।इस घटना में निरुपमा के परिवार वाले कानून के घेरे में तो हैं ही लेकिन इस पूरे प्रकरण में प्रियभांशु औऱ उसके मित्र के कारगुजारी को भी सामने लाना अहम हैं क्यो कि अभी तक जो इन लड़को के मोबाईल का प्रिंट आउट आया हैं उससे कई राज खुलने वाला हैं क्यो कि कुछ खास नम्बर हैं जिन पर इन लड़को की घंटो बातचीत होती रही हैं।वह नम्बर एक दो नही हैं पाच छह हैं और वे सभी नम्बर लड़कियो के हैं।जब बात बढी हैं तो मीडिया वालो का यह भी दायुत्व हैं कि सिर्फ अधिकार की ही बाते नही होनी चाहिए ।अधिकार के साथ साथ कर्तव्य की भी बात होनी चाहिए क्यो कि जब कोई हाईप्रोफाईल पोस्ट पर तैनात बेटा अपने मा बाप को भूखे मरने छोड़ देता हैं तो आप ही इसे खबर बनाकर हाई तौबा मचाते हैं।दूसरी बात जो काफी गम्भीर बाते हैं समाजिक मूल्यो को तोड़ना ही आधुनिकता की पहचान नही हैं।मीडिया इस मसले पर दोनो पक्षो को मजबूती से रखे तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं
निरुपमा के मामले में आंनर किलिंग तो फिर पिता की पाती जैसे शीर्षक को लेकर पिछले कई दिनो से चैंनल और अखबार वाले खबर लिख रहे हैं।खबर का ऐगिल आरुषि,अलीगंढ के प्रोफेसर मामले और भोपाल के स्कूल शिक्षका से जुड़े मामलो की तरह ही एक ही धर्रा पर चल रहा हैं।जिस तरीके से निरुपमा के तथा कथित प्रेमी को आधुनिक भारत के प्रणेता के रुप में मीडिया दिखा रही हैं और कोई विशेष साक्ष्य आये बगैर पूरे मामलो में जिस तरीके से निरुपमा के परिवार वाले को टारगेट किया जा रहा हैं वह बेहद शर्मनाक हैं।
इस मामले को मैं भी काफी करीब देख रहा हू और पोस्टमार्टम रिपोर्ट और लाश के पंचनामा को लेकर जो सवाल अब मीडिया सामने ला रही हैं उसकी खोज मैने ही किया हैं।इस मामले में मीडिया को पार्टी नही बननी चाहिए कई ऐसे विन्दु हैं जिस पर निरुपमा के दोस्त प्रियभांशु रंजन की भूमिका संदिग्ध जान पर रही हैं।अगर मीडिया अपने को जनता का पंक्षधर मानती हैं तो दोनो पंक्ष को सामने लाना चाहिए।मेरा मानना हैं कि निरुपमा की मां जो आज जेल में हैं इसके लिए पूरी तौर पर मीडिया जबावदेह हैं हो सकता हैं मां और मामा ने मिलकर निरुपमा की हत्या की हो लेकिन पुलिस के पास फिलहाल कोई ऐसा साक्ष्य नही हैं। जिससे पूरी तौर पर मां और मामा के द्वारा कांड किये जाने की बात सिद्द होती हो।मामले के नैतिक पंक्ष पर मेरा कुछ भी नही कहना हैं।
निरुपमा की हत्या हुई हैं या फिर निरुपमा ने आत्महत्या की हैं यह पूरी तौर पर साबित नही हो सका हैं।यू कहे तो जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उसके आधार पर सौ प्रतिशत हत्या की बात नही कही जा सकती हैं।जिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर निरुपमा की हत्या की बात कही जा रही हैं उसमें भारी चुक हुई हैं या यू कहे तो पूरा पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही संदेह के घेरे में हैं। मौंत का समय किसी भी पोस्टमार्टम का मुख्य आधार होता हैं लेकिन उस पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौंत का समय अंकित नही हैं।दूसरा पहलू हैं शरीर पर कही भी कोई इनजुरी नही हैं जबकि डाक्टर कहते हैं कि दो तीन लोग इसको जबरन पकड़कर तकिया से मुह बंदकर मारा हैं।ऐसे मामलो में भेसरा का रखना जरुरी होता हैं।लेकिन भेसरा सुरक्षित नही रखा गया वही दूसरी और जब पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड कर रही हैं तो पूरे पोस्टमार्टम का वीडियोग्राफी क्यो नही कराया गया।और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिस पुलिस अधिकारी ने लाश का पंचनामा तैयारी किया था उसने जो लिखा हैं उसमें गर्दन में जो चिन्ह दिखाया हैं वह नीचे से उपर की और दिखाया गया हैं जो आत्महत्या की और इंकित करता हैं।और इससे भी अहम सवाल यह हैं कि जब डाक्टर को पोस्टमार्टम टेबल पर ही हत्या के साक्ष्य मिल गये तो तत्तकाल पुलिस को इसकी सूचना क्यो नही दी ।जब आपने पाया कि निरुपमा गर्भवती हैं तो उस साक्ष्य को क्यो नही रखा।वही आप यह भी लिखते हैं कि हत्या करने के बाद उसे पंखे से लटकाया गया हैं तो ऐसे हलात में हायड बोन को आपने सुरक्षित क्यो नही रखा।हो सकता हैं कि यह महज मानवीय भूल हो लेकिन इसका लाभ किसको मिला।निरुपमा के मा मामा,पिता और भाई तो जांच के दायरे में हैं ही लेकिन इस फाईडिंग से सबसे बड़ा लाभ प्रियभांशु को मिला हैं।जो आज चीख चीखकर न्याय की गुहार लगा रहा हैं।अब जरा आप एक औऱ पहलु के बारे में जान ले।निरुपमा की मौंत 29तारीख के 10बजे तब प्रकाश में आया जब उसके आस परोड़ के लोगो उसे उठाकर अस्पताल ले गये जहां डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।11बजे प्रियभांशु का फोन कोडरमा के एसपी के पास आता हैं कि निरुपमा की हत्या की गयी हैं।उसके घर वालो ने ही हत्या की हैं।इस फोन के बाद पुलिस पहुचती हैं औऱ उसके मां से बयान लेने के बाद चली जाती हैं कि कल तक उसके पिता और भाई पहुंच रहे हैं।लाश निरुपमा के घर पर ही रखा रहा ।इस बीच प्रियभांशु के दोस्त अमित कर्ण और हिमांशु शेखर कोडरमा के पत्रकारो को इस मामले के बारे में फोन पर फोन करने लगा औऱ इन दोनो का एक ही सवाल था कि निरुपमा के परिवार वाले दिल्ली से इस मामले को तो नही जोड़ रहे हैं।इसके बाद मीडिया वाले निरुपमा के घर पहुंच कर प्रेम प्रसंग से लेकर कई तरह के सवाल किये लेकिन उसके परिवार वाले कुछ भी बोलने को तैयार नही था।बात बनती नही देख इन लड़को ने कांलेज संगठन के पैड पर लिखकर एसपी कोडरमा और सिविल सर्जन कोडरमा को फैक्स कर निरुपमा की हत्या की आशंका जताते हुए मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने का आग्रह किया।उसी आधार पर निरुपमा का पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड से कराया गया।इस पूरे मामले में जो अहम सवाल हैं वह हैं कि प्रियभांशु को निरुपमा की हत्या की जानकारी एक घंटे के अंदर कैसे हो गयी जबकि इसकी खबर स्थानीय मीडिया तक को नही थी।दूसरी बात निरुपमा के दिल्ली स्थित आवास से सारा समान को आनन फानन में उसके दोस्तो ने क्यो हटाया।इन तमाम बिन्दु पर कोडरमा एसपी प्रियभांशु से पिछले तीन दिनो से जाबव मांग रहे हैं लेकिन वह जबाव देने से बचता रहा जिसके कारण पुलिस को पुछताछ के लिए दिल्ली जाना पड़ा हैं।ऐसे कई और विन्दु हैं जिस पर संघन जांच की जरुरत हैं।इस घटना में निरुपमा के परिवार वाले कानून के घेरे में तो हैं ही लेकिन इस पूरे प्रकरण में प्रियभांशु औऱ उसके मित्र के कारगुजारी को भी सामने लाना अहम हैं क्यो कि अभी तक जो इन लड़को के मोबाईल का प्रिंट आउट आया हैं उससे कई राज खुलने वाला हैं क्यो कि कुछ खास नम्बर हैं जिन पर इन लड़को की घंटो बातचीत होती रही हैं।वह नम्बर एक दो नही हैं पाच छह हैं और वे सभी नम्बर लड़कियो के हैं।जब बात बढी हैं तो मीडिया वालो का यह भी दायुत्व हैं कि सिर्फ अधिकार की ही बाते नही होनी चाहिए ।अधिकार के साथ साथ कर्तव्य की भी बात होनी चाहिए क्यो कि जब कोई हाईप्रोफाईल पोस्ट पर तैनात बेटा अपने मा बाप को भूखे मरने छोड़ देता हैं तो आप ही इसे खबर बनाकर हाई तौबा मचाते हैं।दूसरी बात जो काफी गम्भीर बाते हैं समाजिक मूल्यो को तोड़ना ही आधुनिकता की पहचान नही हैं।मीडिया इस मसले पर दोनो पक्षो को मजबूती से रखे तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं
साभार : - तूती की आवाज
संतोष कुमार सिंह