वी के मूर्ती को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहेब फालके पुरस्कार के लिए चुना गया !!

प्यासा, कागज के फूल, चौंदहवीं का चांद और साहब बीबी और गुलाम जैसी गुरुदत्त की अविस्मरणीय श्वेत-श्याम फिल्मों में रौशनी और छाया का चमत्कार पैदा करके दर्शकों का दिल मोह लेने वाले महान सिनेमेट्रोग्राफर वी के मूर्ति को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया है।

भारत सरकार ने मूर्ति को वर्ष 2008 के लिए इस अति प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना है। यह पहला मौका है जब किसी सिनेमेटोग्राफर को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। गौरतलब है कि भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के स्वयं सिनेमाटोग्राफर थे जिन्होंने राजा हरिश्चन्द्र बना कर देश में सिनेमा की नींव रखी।

वी के मूर्ति के कैमरे के कमाल को फिल्म चौदहवीं का चांद में वहीदा रहमान पर फिल्माए गए और मोहम्मद रफी के गाए गीत चौदहवीं का चांद हो आफताब हो, के फिल्मांकन में देखा जा सकता है जिसके देखकर दर्शक अपनी सुध बुध खो बैठे थे। गौरतलब है कि मूति ने फिल्मों में वायलिन वादक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया लेकिन उन्होंने गुरुदत्त की फिल्मों में कैमरे का जो कमाल दिखाया, वह अद्भूत है। उन्होंने कागज के फूल एवं साहब बीबी और गुलाम के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया। उनकी अन्य फिल्मों में बाजी जाल 12 ओ क्लॉक और जिद्दी शामिल है।