लेखक : सनी
सनी का सबको और गुरुजी के साथ साथ अन्तर्वासना चलाने वाले एक एक कर्मचारी को गीली गांड से घोड़ी बन कर प्रणाम ! अन्तर्वासना ने मेरी हर चुदाई को अपनी वेबसाइट में जगह देकर मुझे विश्वास दिलाया कि यहाँ हर किसी की सुनवाई होती है। आज एक बार फिर से मैं अपनी नवीनतम चुदाई को लिख कर बयान करने जा रहाँ हूँ। उम्मीद है कि पहले की तरह ही मेरे दोस्तों की सूची में बढ़ौतरी होगी। दोस्तो, उम्मीद है कि पिछली सभी ठुकाइयों की तरह यह ठुकाई भी आप सबको गर्म कर देगी और सभी के लौड़े खड़े हो जायेंगे और किसी न किसी की गांड मारने के लिए बेताब हो जायेंगे।
दोस्तो, चुदाई के लिए जगह पता करना मेरी हॉबी में शामिल हो चुका है। आज जिस जगह के बारे में लिख रहा हूँ यह भी मेरे एक ऐसे दोस्त ने बताई है जिसके साथ आज तक सिर्फ याहू पर चैट हुई है या फिर मोबाइल पर रात को चुदाई ! उस बन्दे की उम्र ५९ साल की है। साठ के करीब पहुँच चुके मेरे इस दोस्त ने मुझे मेरे अपने ही शहर की ऐसी ऐसी जगहें बताई हैं जिनके बारे में शहर में रहकर भी नहीं जानता। वो बरसों पहले मेरे शहर में रह चुका है। उसने मुझे बताया कि शहर के बीचों बीच एक ऐसी जगह है जहाँ तुझे लौड़ा क्या लौड़े मिल जायेंगे एक फिल्म-टाकी जो थिएटर जितनी बड़ी तो नहीं है लेकिन वो एक ऐसे काम्प्लेक्स में है जहाँ रहने के लिए गेस्ट हाउस भी है और उस टाकी में सिर्फ ब्लू फिल्में लगतीं हैं सो उसकी बताई हुई इस जगह पर मैंने जाने की सोची।
बस-स्टैंड से मैंने रिक्शा वाले को अमृत-टाकी नाम की इस मिन्नी थिएटर जाने को कहा। उसने मुझे वहाँ उतार दिया। मैं उस कम्प्लेक्स में घुसा। गेस्ट हाउस ऊपर है और टाकी बेसमेंट में थी। पास में चाइनीज़ फ़ूड का रेस्तौराँ भी था। मैं बेसमेंट की सीढ़ियाँ उतरा, वहाँ ब्लू फिल्म के पोस्टर लगे हुए थे। फिल्म थी- वन लेडी-थ्री मैन
सामने टिकट-काउंटर था जिसपे अभी कोई नहीं था। फिल्म को शुरू होने में काफी समय था। वहाँ फिल्म देखने आने वाले लोग आने लगे। अभी तक सभी निम्न-वर्ग के लोग ही थे जिनमें रिक्शा चालक और पंजाब में बाहर से आकर बसे प्रवासी लोग जो मेहनत मजदूरी करते और हफ्ते में एक-आध बार मनोरंजन करने वहाँ फिल्म देखने आते क्यूंकि टिकट के दाम बहुत कम थे।
मेरे जैसा गोरा चिट्टा चिकना वहाँ कोई नहीं था। जब भी मैं चलकर इधर-उधर जाता, उनकी नज़र मेरी गोल मोल गांड पर टिकती। वहाँ खड़े लोगों में से दो मर्द ऐसे थे जो मेरे बारे में अपना अंदाजा लगाने की फिराक में थे। जब उन्होंने मेरी तरफ देखा तो मैंने होंठ चबा दिया और होंठों पर जुबां फेर उनको उकसाने की पहली कोशिश की और कुछ हद तक मैं कामयाब भी हुआ। मुझे देख एक ने अपना लुंड खुजलाया, जिसे देख मैं शरमाया झूठ-मूठ में, लेकिन हंस के होंठों पर जुबां फेरते हुए उनके लौड़े की ओर हवा में चुम्मा फेंका। वो चलते हुए टाकी के पीछे साइकिल स्टैंड में बने शौचालय में घुस गए। जब वो वापस न आये तो मैं टहलते हुए वहीं जा पहुंचा। कोई आसपास न देख मैं उनके पास खड़ा हो गया, कुछ नहीं बोला, न कुछ किया,
उनकी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया। उनको समझ ना आया कि अब करें क्या !
तभी किसी ने पीछे से आकर मेरी गांड की गोलाइयों पर हाथ फेरना शुरु किया। मुझे बहुत मस्ती छाई लेकिन चुपचाप खड़ा रहा। उसने आगे हाथ बढ़ा मेरी पैंट खोलने की कोशिश की तो मैंने रोकते हुए उनकी ओर घूम कर देखा। तभी दूसरे ने घूम मेरे पीछे जा गांड पर हाथ फेरना चालू रखा। मैंने आगे वाले की जिप खोल हाथ डालते हुए उसको मसल दिया और घुटनों के बल होते हुए उसको निकाल मुँह में ले लिया। तभी किसी कि आने की आहट सुन हम रुक गए कपड़े सही किये। उस आदमी ने मुझे उसकी जिप बंद करते देख लिया। हम वहां से निकल आये। वो भी कुछ मिनट बाद वापस आ गया।
मेरे आशिक बोले- चल सिगरेट, चाय वगैरा पी कर आते हैं !
अभी चालीस मिनट थे फ़िल्म शुरु होने में ! वो भी सब मेरे जैसा कोई गांडू भालने कोशिश में ही थे। मैं वहीं रुक गया तो वो तीसरा बन्दा मेरे सामने खड़ा हो गया और लौड़े को बार बार खुजलाने लगा। मैंने थोड़ा मुस्कुरा सा दिया, आंख के एक इशारे से मुझे वहीं चलने को कहा जहाँ मैं उन दोनों के साथ गया था। उसने जाते ही लौड़ा निकाल लिया और सीधा मेरे हाथ में थमा दिया। मैंने प्यार से सर से लेकर जड़ तक सहलाया और झुकते हुए मुँह में डाल लिया। उसने मुझे बताया कि वो उसी काम्प्लेक्स के गेस्ट हाउस में रुका था। उसने अपना कार्ड दिया कुछ देर चुसवा उसने मुझे छोड़ दिया।
मैं वहीं जाकर खड़ा हो गया, दोनों आये, मुझे टाकी में ले गए और एक खाली कोना देख मुझे बिठा लिया। वहाँ सोफा-सीट्स थीं, बाहर से टिकट सस्ती थी लेकिन अन्दर हर तरह की सुविधा थी। कोई किसी को परेशान नहीं करता, बस पैसे लेते थे। अन्दर लाइट बंद हुई, मेरी पैंट घुटनों तक खिसका दी गई और उनके लौड़े तने हुए मुझे पुकार रहे थे। दोनों के बीच बैठ बारी-बारी मेरे मुँह में डालते। एक ने ऊँगली घुसा दी, फिर सोफा पर ही मेरी टाँगें चौड़ी करवा दीं और बीच में आकर आसन लगाकर लौड़ा गांड पर रखने लगा। मैंने अपनी जेब में से कंडोम निकाले उसके लौड़े पर डाल दिया और उसने अपना लौड़ा घुसा दिया। थोड़ी सी तकलीफ के बाद मुझे मजा आने लगा। दूसरा मेरे मुँह में चूपे लगवाने लगा।
अह… उह… मार मेरी और कर… हाय और कर…
मेरी गांड की गर्मी में वो जल्दी पिघल गया। उसने अपना माल कंडोम में छोड़ दिया। दूसरे ने कंडोम डाला और घुसा दिया। मुझे बहुत मजा आ रहा था कि दो-दो लौड़ों में खेल रहा था। तभी किसी ने हम पर टॉर्च मारी मुझे चुदवाते देख वो उसी तरफ आया। जल्दी से लौड़े बंद किये और सीधे बैठ गए। उसके जाने के बाद हमने इस बार सोफा की बजाये नीचे लेटना सही समझा। दूसरे ने मुझे दबा कर चोदा। तो पहले वाले का मैंने चूस कर फिर खड़ा करवा दिया। दो घंटे की फिल्म में दोनों ने दो दो बार मेरी ठुकाई की। पहली बार तो मेरी जवानी से पल में पिघल गए दूसरी बार जम कर ठोका। उन दोनों ने अपना नंबर दिया वो तीसरे बन्दे की नज़र मेरे ऊपर रही। मैं जैसे ही बालकनी से निकला, उनको विदा किया।
अभी थिएटर से निकला ही था कि तीसरे ने मुझे बाथरूम में फिर से आने का एक गरम इशारा किया वहां आने के लिए ! मेरे पहुँचते ही वो मुझ पर टूट पड़ा। उसने अपना लौड़ा हाथ में दिया, मैं बैठ कर चूसने लगा। उसने मेरे से मुठ मरवाई और लौड़ा भी खुल कर चुसवाया। उसके झड़ने का वक्त आते देख मैंने उसका माल घोड़ी सा बन अपने छेद पर गिरवा लिया। उसने अपना माल मेरी गांड पर मल दिया। उसने मुझे शाम ५ बजे अपने कमरे पर बुलाया और मैं सही समय पर वहां चला गया। उसने काफी पी रखी थी, बिलकुल नंगा था सिर्फ कच्छा डाला था। मुझे अन्दर घुसाते ही उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया। वो बेड की ओट लेकर टांगें फैला कर बैठ गया। मैंने बीच में आते हुए उसला लौड़ा अपने मुँह में ले लिया और खूब दबा कर चूसा। उसने भी ६९ में हो मेरी गांड चाटी दबा कर मेरे मम्मे मसले। उसने मुझे दीवार को पकड़ थोड़ा झुककर खड़े होने को कहा और एक खिलाड़ी की तरह मुझे चोदा। बहुत मजा दे रहा था, पूरे ३ घंटे उसने मुझे दबा कर अपने लौडे पर उछाला, मुझे पूरी संतुष्टि दी। एक ही दिन में तीन लौड़े पाकर मैं खुश था।
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