प्रेषिका : अक्षिता शर्मा
प्रस्तुति - नेहा वर्मा
कार में मैं और रोनी अन्जान थे, पर मुन्ना और बबलू अपनी गर्ल-फ़्रेन्ड्स के साथ थे। चूंकि कार रोनी की थी सो उसे तो साथ आना ही था। मुझे तो मंजू ने कहा था। नैना बबलू के साथ थी। कार कच्ची सड़क पर हिचकोले खाती हुई चल रही थी। पीछे बैठे मन्जू और नैना मुन्ना और बबलू के साथ बड़ी ही बेशर्मी से अश्लील हरकतें कर रही थी। उन्हें देख कर मेरे मन में भी गुदगुदी होने लगी थी। पर मन मसोस कर चुपचाप बैक-मिरर से उनकी हरकतें देख रही थी।
तभी एक गार्डन जैसे स्थान पर रोनी ने गाड़ी रोक दी। साथ में लगी हुई नदी बह रही थी। दूर दूर तक कोई नहीं था। हमने कार में से दरियां निकाल कर उस जन्गल जैसी जगह में बिछा ली। सारा सामान निकाल कर एक जगह लगा दिया। थर्मस से चाय निकाल कर पीने लगे। तभी बबलू और मुन्ना ने अपने कपड़े उतार दिये और मात्र एक छोटी सी अन्डरवियर में आ गए। दोनों ने ही नदी में छलांग मार दी…
मंजू और नैना भी पीछे पीछे हो ली। चारों पानी में उतर गये और खेलने लगे। बस मैं और रोनी वहां रह गये थे। मैं तो जैसे उन सभी के बीच साधारण सी लग रही थी। ढीला ढीला कुर्ता पजामा, कहीं से कोई भी अंग बाहर नहीं झांक रहा था। इसके उलट मैना और मंजू तो अपनी छोटी छोटी स्कर्ट में अपना जैसे अंग प्रदर्शन करने ही आई थी। कुछ ही देर में नदी में छपाक छपक की आवाजें बन्द हो गई। दोनों ही जोड़े पानी के अन्दर कमर तक एक दूसरे के साथ अश्लील हरकतें करने लगे थे।
"कोमल उधर मत देखो … वो तो है ही ऐसे ! यही करने तो आए हैं यहाँ ये सब !" रोनी ने मुझसे कहा।
"जी… जी हां… वो …" मेरे विचारों की श्रृंखला टूट गई थी, मेरे मन की गुदगुदी जैसे भंग हो गई।
"आओ , अपन उधर चलते हैं !"
मैं उसके साथ चुपचाप उठ कर चल दी। एक झाड़ी के झुरमुट के पीछे खड़े हुये ही थे कि मुन्ना और नैना नदी में उसी तरफ़ एकांत देख कर छुपे हुये थे। नैना ने मुन्ना का लण्ड पकड़ा हुआ था और उसकी स्कर्ट नैना के चूतड़ से ऊपर थे जिसे मुन्ना बेरहमी से दबा रहा था। उसे देख कर मेरा दिल जोर से धड़क उठा। रोनी भी हतप्रभ सा रह गया। हम दोनों की नजरें जैसे उन पर जम गई। तभी मुझे अहसास हुआ कि रोनी मेरे साथ में है। मैंने घबरा कर रोनी की तरफ़ देखा। रोनी अभी भी ये दृश्य देख कर सम्भला नहीं था। रोनी का लण्ड जैसे अपने आप करवटें लेने लगा। रोनी ने मेरी तरफ़ देखा… मेरी नजरें अपने आप झुक गई। मेरा मन भी डांवाडोल हो उठा। जवानी का तकाजा था… मेरा चेहरा लाल हो उठा। रोनी की नजरों में लालिमा उभर आई। नैना और मुन्ना की अश्लील हरकतों से मेरी जान पर बन आई थी। लाज से मैं मरी जा रही थी।
"कोमल, यह तो साधारण सी बात है, दोनों जवान है, बस मस्ती कर रहे हैं !"
"ज़ी… नहीं वो बात नहीं … " मैंने झिझकते हुये कहा। मेरे चेहरे पर पसीना उभर आया था। उसने पीछे से आकर मेरी बाह पकड़ ली। मेरा जिस्म पत्ते की तरह कांप गया। मैंने अपनी बांह उससे छुड़ाने की कोशिश की।
मेरा मन एक तरफ़ तो रोनी की हरकतों से प्रफ़ुल्ल हो रहा था… तो दूसरी तरफ़ डर भी रही थी। मैंने सोचा कि अगर मैं रोनी को छूट दे दूं तो वो फिर मुझे चोदने की कोशिश करेगा। बस यह बात दिल आते ही मेरा दिल धाड़ धाड़ करने लगा। उसी समय मुझे लगा कि रोनी का हाथ मेरे कमर के इर्द गिर्द लिपट गया। मेरा अनछुआ शरीर पहली बार कोई अपनी बाहों में भर रहा था।
"ऐसे मत करिये जी… मैं मर जाऊंगी !"
"कोमल, यहां हमें कोई नहीं देख रहा है, बस एक बार मुझे किस कर लेने दो !"
"क्…क्…क्या कह रहे हो रोनी… मेरी जान निकल जायेगी… हाय राम !"
मेरे ढीले ढाले कुर्ते पर उसके हाथ फ़िसलने लगे। उसका एक हाथ मेरे बालों को सहला रहा था। मुझे जैसे नींद सी आने लगी थी।
"मेरी मां… हटो जी… मुझे मत छुओ … " मेरी सांसे तेज हो गई। शर्म के मारे मैं दोहरी हो गई। उसके हाथ अब मेरी छोटी छोटी चूंचियों पर आ गये थे जो पहले ही कठोर हो गई थी। निपल जैसे कड़े हो कर फ़टे जा रहे थे। उसके हाथों तक मेरे दिल की धड़कन महसूस हो रही थी। शरीर में मीठा मीठा सा जहर भरा जा रहा था। उसके अंगुली और अंगूठे के बीच मेरे निपल दब गये। उसे वो हल्के से मसल रहा था। मेरी सिसकियां मुख से अपने आप ही निकल पड़ी। मन कर रहा था कि बस मुझे ऐसा मजा मिलता ही रहे। दिल की कोयलिया पीहू पीहू कर कूक उठी थी।
उसका मैंने जरा भी विरोध नहीं किया। मैंने पास के पेड़ के तने से लिपट गई। उसका हाथ अब मेरे छोटे से चूतड़ो पर था। ढीले पजामे में मेरे चूतड़ के गोले नरम नरम से जान पड़े… कैसी मीठी सिरहन पैदा हो गई। मैं ऊपर से नीचे तक सिहर उठी।
"चलो, वहीं चल कर कर बैठते हैं … वो दोनों तो अपने आप में खोये हुये हैं। मैंने शरम से झुकी अपनी बड़ी बड़ी आंखे उठा कर रोनी को देखा… उसका लण्ड बहुत जोर मार रहा था। उसके हाल पर मुझे दया भी आई… मेरी हालत भी सच में दया के काबिल थी…। हम दोनों वापस दरी पर जाकर बैठ गये। वहां कोई नहीं था, शायद वो चुदाई में लगे थे। उनकी चुदाई के बारे में सोच कर ही मुझे शर्म आने लगी थी।
रोनी ने मेरा कंधा हाथ से थाम लिया और मुझे जोर लगा कर लेटा दिया। उसने मुझे अपने नीचे धीरे से दबा लिया और अपने अधर मेरे अधरों पर रख दिये। मैंने भी सोचा कि अब ज्यादा नखरे दिखाने से कोई फ़ायदा नहीं है… मेरे साथ की सहेलियां तो मस्ती से चुदवा रही है… मैं भी जवानी का मधुर मजा ले लूँ। यह सोच कर मैंने अपने आपको रोनी के हवाले कर दिया। रोनी को भी लगा कि अब विरोध समाप्त होता जा रहा है … और मैं चुदने के लिये मन से राजी हूं तब वो मुझ पर छाने लगा। मेरी आंखे उन्माद में बन्द होने लगी थी।
रोनी ने कब अपने कपड़े उतार लिये मुझे पता ही नहीं चला। वो मेरे कपड़े भी एक एक करके उतारने लगा। जब ब्रा की बारी आई तो मैं शर्म से लाल हो गई थी। मेरे रोकते रोकते भी ब्रा उतर चुकी थी। मैंने दोनों हाथ आगे करके अपनी चूंचियां छुपा ली। पर अब मेरी पैन्टी को कौन सम्भालता। उसने उसे भी खींच कर उतार दी… मेरी चूत अब नीले गगन के तले खुली हुई थी। मैंने अपनी चूत छुपाई तो मेरी चूंचियां पहाड़ की तरह सीधी तनी हुई सामने आ गई। मेरे जवान जिस्म के कटाव और उभार रोनी पर तलवार की भांति वार कर रहे थे।
मेरा कसा हुआ सुन्दर जिस्म था। चिकना और लुनाई से भरा हुआ चमकता हुआ जिस्म।
शायद दोनों से बहुत सुन्दर, उत्तेजना से भरा हुआ, कसकता हुआ शरीर।
"मर गई मेरी मां !!! मुझे बचा लो कोई…" उसका हाथ मेरी चूंचियों पर आ गया था। मैं नीचे दबी हुई शर्म से घायल हुई जा रही थी।
"कोमल जी… आपकी छाती तो बुरी तरह धड़क रही है…"
"रोनी… अब बस करो ना … देखो तुमने मेरा कैसा हाल कर दिया है… छोड़ दो मुझे !"
मेरी चूत जैसे लण्ड लेने के लिये बेकाबू होती जा रही थी। मेरी उलझी हुई लटें अब वो समेट रहा था। उसने जल्दी से कण्डोम निकाला और लण्ड पर पहनाने लगा। मैंने तुरन्त ही उसे छीन कर एक तरफ़ फ़ेंक दिया। वो समझ गया कि मैं अपनी चुदाई में नंगा लण्ड खाना चाहती हूं। उसका कड़क लण्ड मेरे अनछुई योनि-द्वार पर दस्तक दे रहा था। मेरी चूत पानी छोड़ छोड़ कर बेहाल हो रही थी। रोनी का भार मेरे शरीर पर बढ़ चला। उसका लण्ड ने बड़ी सज्जनता से चूत में प्रवेश कर गया। मैंने अपने वासना के मारे अपने होंठ काट लिये। रोनी को अपनी ओर दबा लिया। उसका लण्ड मोटा और लम्बा था। सुपाड़ा भी नरम और गद्देदार था।
"मुझे अपना लो रोनी… घुसा डालो… अब ना तड़पाओ मुझे…" मेरे मुख से अस्पष्ट से शब्द फ़ूट पड़े। उसका लण्ड धीरे धीरे से अन्दर की ओर बढ़ चला। वहां वह रुक गया… फिर हल्का सा जोर लगाया। मुझे चूत में हल्का सा दर्द हुआ। फिर और आगे बढ़ा… दर्द और बढ़ा। अब वो रुक सा गया… मुझे प्यार करने लगा। मेरी चूंचियां सहलाने लगा। मुझमें उत्तेजना बढ़ती गई। उसका हल्का जोर और लगा …
थोड़ा सा दर्द और हुआ… यूं धीरे धीरे करते करते उसका लण्ड मेरी चूत में पूरा फ़िट हो गया। तभी मेरी चूत से खून की धार सी निकल पड़ी… मुझे गीलापन लगने लगा था, पर मुझे यह भी मालूम था कि मेरी झिल्ली फ़ट चुकी है, पर दर्द अधिक नहीं हुआ। शायद ये प्यार से लण्ड को भीतर उतारने के कारण था। अगला शॉट भी बहुत ही हौले से उतारा। मुझे तो पहली बार में ही चुदाई दिल को भाने वाली लगी। कली खिल चुकी थी। भंवरे ने डंक मार दिया था और अब वो कली का यौवन रस पी रहा था। फ़ूल खिलने को बेताब था। अपनी पंखुड़ियां खोले भंवरे को कैद करने के प्रयत्न में था।
तभी मुझे अपनी साथियों की तालियां और हंसी सुनाई दी। वो चारों हम दोनों के घेरे खड़े थे… पर क्या करती… रोनी का लण्ड चूत में पूरा घुसा हुआ था। मैं मुस्कराती हुई शर्म से रोनी को खींच कर अपना चेहरा छुपाने की कोशिश करने लगी। फिर नहीं बना तो हाथों से मैंने अपना चेहरा छिपा लिया। रोनी के धक्के अब चल पड़े थे… हर धक्के पर सभी साथी ताली बजा कर मेरा और रोनी का उत्साह बढ़ा रहे थे। तभी मैंने देखा बबलू ने अपने लण्ड पर, मुझे देख कर मुठ मारने लगा था। कुछ ही देर में मंजू ने उसका लण्ड थाम लिया और बबलू की मुठ मारने लगी। तभी मुन्ना का भी छोटा सा और सलोना लण्ड नैना ने पकड़ कर चलाने लगी।
मुझे ये समां बहुत प्यारा लग रहा था। सभी मेरा साथ दे रहे थे। धीरे धीरे मेरी शर्म भी समाप्त होने लगी। मैं भी सबकी ताल में ताल मिलाने लगी। नीचे से अपनी चूत उछालने की कोशिश करने लगी। पर उछाल नहीं पाई, मुझे ऐसा कोई अनुभव नहीं था। पर शरीर में वासना भरी तरंगें चलने लगी थी। मेरा जिस्म जैसे काम देवता की गिरफ़्त में आ चुका था, मुझे आसपास आती हुई आवाजें भी सुनाई देना बन्द हो गई थी। बस चुदाई का सुनहरा आलम मुझ पर छा गया था। मैं आनन्द के सुख सागर में गोते खाने लगी थी। रोनी का लण्ड भचाभच मुझे चोद रहा था। तभी जैसे मेरा जिस्म जैसे तरावट से भर गया और लगा कि जैसे चूत में मिठास भर गई हो… एक सिसकी के साथ मेरा रति-रस छूट पड़ा। तभी रोनी भी का लण्ड भी मेरी चूत से बाहर आ गया और वो मुठ मारने लगा। मैंने अपना मुख खोल कर ज्योहीं एक भरपूर सांस ली मेरा मुख वीर्य की पिचकारियों से नहा उठा।
रोनी के साथ साथ मुन्ना और बबलू भी अपने लण्ड की पिचकारियां मेरे मुख की ओर निशाना साध कर छोड़ रहे थे। नैना और मन्जू ने जल्दी से तौलिये से मेरा मुख साफ़ कर दिया। दरी पर मेरी चूत से निकला हुआ खून भी था। दरी को नदी में धो कर सूखने को डाल दिया।
कुछ ही देर में हम सभी साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। लन्च समाप्त करके हम सभी फिर से नदी में मस्ती करने का कार्यक्रम बना रहे थे।
"आज तो हमारी नई दोस्त कोमल का भी उदघाटन हुआ है… आज सभी उसे खुश करेंगे !"
"तो चलो, सामने का तो उदघाटन हो चुका है, अब पिछवाड़ी का नम्बर लगाते हैं… !"
"कोमल जी, आप कहे … आप किससे उदघाटन करवायेंगी…?"
"चलो हटो जी… मुझे कुछ नहीं करवाना… वो तो ये सब अपने आप हो गया था… सारा कसूर तो नैना का है… उसी ने मुझे फ़ंसा दिया था !"
"अरे कोमल, लड़की हो तो चुदना तो पड़ेगा ही ना… आज नहीं तो कल… किसी को दोष ना दो !"
"चलो, अब नदी में चलें… नंगे हो कर नहायेंगे…" सभी हुर्रे कहते हुये कपड़े उतार कर नदी में कूद पड़े… मुझे भी मन्जू धक्का देकर ले चली। पर मैंने अपनी ब्रा और पैन्टी पहन ली थी। मंजू और नैना तो बेशर्म हो कर नंगी हो हर नाच रही थी। अचानक मुन्ना ने मुझे पानी में खींच लिया। मैं हड़बड़ा कर उसकी बाहों में सिमटती चली गई। यह देख कर मन्जू रोनी से लिपट गई और नैना ने अपना साथी बबलू को बना लिया। मुन्ना ने मुझे पानी के भीतर कमर तक ले लिया और मेरे जिस्म से खेलने लगा। मुझे ये सेक्स विहार रोमांचित कर गया। आज ही पहली चुदाई और फिर अब पानी में भी चुदाई। मुन्ना ने मेरी पैन्टी उतार दी और मेरी गाण्ड से चिपक गया। उसका लण्ड रोनी जैसा मोटा और लम्बा तो नहीं था, छः इन्च लम्बा तो होगा ही। उसके लण्ड के स्पर्श से मैं फिर रोमांचित हो उठी। मेरे दोनों चिकने चूतड़ के गोलों के बीच वो घुसा जा रहा था।
"मुन्ना… ऐसे नहीं कर… बस नहाते हैं…"
"अरे नहीं कोमल, आज तो तेरी गाण्ड का भी मारनी है… बिलकुल अभी… चल पानी में ही गाण्ड चुदवा ले… देखना मजा बहुत आयेगा !"
"पर मुझे लाज आती है … फिर कभी !" मैंने शर्माते हुये कहा। मन तो गाण्ड चुदवाने का कर रहा था, पहला मौका जो था, लग रहा था … पूरे मजे ले लो, पता नहीं जिन्दगी में कभी नसीब हो ना हो। पर मेरा शरमाना काम नहीं आया… उसका लिन्ग मेरी गाण्ड के छेद पर चिपक चुका था, पर एक हल्के जोर की आवश्यकता थी।
मेरी गाण्ड में गुदगुदी सी हुई। मैं पानी में झुकती चली गई।
"मुन्ना, प्यार से लण्ड घुसाना, नया माल है… देख मजा आना चाहिये…" रोनी ने हांक लगाई।
"अरे मरने दो ना… चुद चुद कर वो अपने आप हमारी जैसी हो जायेगी…" मंजू ने रोनी को टोक दिया।
मुन्ना ने कहा,"मैंने लाल निशान देख लिया था।… प्यार से उदघाटन करूंगा !" मुन्ना हंस कर बोला। मेरा मन विचलित हो उठा। मुन्ना के लण्ड का जोर पर गाण्ड पर बढ़ता गया। मैंने भी अपनी गाण्ड का छेद ढीला छोड़ दिया। मुन्ना का लण्ड फ़ुफ़कारता हुआ अपनी विजय पताका फ़हराता हुआ अन्दर जा घुसा। मेरे बदन में एक दर्द भरी मीठी सी लहर दौड़ गई। सभी साथियों ने लण्ड प्रवेश पर तालियाँ बजा कर मेरा अभिवादन किया। मैं शर्म से जैसे मर गई। पर फिर भी इतनी तसल्ली तो थी ना ! पहले की तरह खुली चुदाई नहीं थी, बल्कि पानी के अन्दर थी। सो मैंने भी धीरे से हाथ लहरा कर सभी की बधाई स्वीकार की… सभी साथी अपने काम धन्धे पर लग गए। अब उन सबका ध्यान स्वयं की चुदाईयों पर था। बबलू और रोनी का ने अपना ध्यान मन्जू और नैना को चोदने में केंद्रित कर लिया था। उसका दुबला पतला सा लण्ड मेरी गाण्ड में गजब की मिठास भर रहा था। मेरी चूत गाण्ड मराने की गर्मी से फिर लण्ड मांगने लग गई थी। लण्ड पतला होने से मुझे गाण्ड में बिल्कुल नहीं लग रही थी, वो तो सटासट चल रहा था। मैंने रोनी की तरफ़ देखा और उसे इशारा किया…।
रोनी मंजू को छोड़ कर मेरे पास आ गया। वो समझ गया था कि चूत में सोलिड वाला लण्ड चाहिये था। मुन्ना लपक कर मंजू को चोदने चला गया। रोनी ने अपना मोटा और लम्बा लण्ड पीछे से ही मेरी चूत में प्रवेश करा दिया। मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। फिर एक बार और रसभरी चुदाई चल पड़ी। पानी के अन्दर छप-छप का शोर हमें और भी मस्त किये दे रहा था। कुछ ही देर में मैं झड़ गई। पर रोनी अभी भी टनाटन था। रोनी के मोटे लण्ड ने मेरी चूत दो बार चोद दी थी। उसकी चुदाई बहुत ही सुन्दर थी। इधर मुन्ना झड़ चुका था और रोनी अपना वीर्य निकालने के लिये फिर से मंजू के पास आ गया था।
हम सभी अब अपने अपने कपड़े पहन रही थी और मेक-अप कर रही थी। सारा सामान वो कार में साथ लेकर आई थी। उन्हें इन सभी चीजों का पुराना अनुभव जो था। कुछ ही समय में हम सभी बहुत ही सभ्य और गरिमामय लोग लग रहे थे। कार घर की तरफ़ लौट पड़ी। रास्ते में हमने कोल्ड ड्रिन्क भी पी… और आज की रंगीन पिकनिक के बारे में बतियाते रहे। उनका मुख्य बिन्दु मेरी चुदाई ही थी। सभी ने आज की मेरी सफ़ल चुदाई पर रात को होटल में डिनर का आमंत्रण दिया… मैं बहुत ही खुश थी आज की चुदाई को लेकर…
आपकी
नेहा वर्मा
अक्षिता शर्मा
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