लेखिका : नेहा वर्मा
सुलगते जिस्म-1
नई जवानी थी ... कुछ ही देर में वो फिर से तरोताज़ा था।
मेरी चूत को अब उसका लंबा और मोटा लौड़ा चाहिये था। उसके लिये मुझे अधिक इन्तज़ार नहीं करना पड़ा।
मैंने उसे अपनी चूंचियाँ दर्शा कर प्यार से फिर उकसाया। उसका नंगा बदन मुझे बार बार चुभ रहा था ... मेरी चूत उसका लण्ड देख कर बार बार फ़ड़फ़ड़ा रही थी। पर मन की बात कैसे कह दूँ ... स्त्री सुलभ लज्जा के कारण बस मैं उसके लण्ड को बड़ी तरसती हुई नजरों से देख रही थी।
"भाभी आपने तो कपड़े पहन लिये ... ये क्या ... मुझे देखो ... मेरा तो लण्ड ... " मैंने शरम के मारे उसके मुख पर अंगुली रख दी, पर वो तो मेरी अंगुली ही चूसने लगा।
"आह्ह्ह सुनील, ऐसा मत बोल ... तूने तो मेरी पिछाड़ी को आज मस्त कर दिया ... अब और क्या मुझे पूरी नंगी करेगा ... "
"देखो अगर नहीं हुई तो ,मैं जबरदस्ती नंगी कर दूंगा ... तुम्हें एक बार तो दबा के चोदना तो है ही !" मेरा मन एक बार फिर से उसके हाथों नंगा होने को और चुदने को मचल उठा।
"देखो बात तो बस छूने तक ही थी ना ... ये और कुछ करोगे तो मैं मारूंगी ... हांऽऽऽऽऽ !"
मुझे पता था कि अब वो मुझ पर लपकेगा। ऐसा ही हुआ ... उसने मुझे हाथ पकड़ कर अपने पास खींच लिया और एक झटके में मेरा टॉप उतार दिया। मेरा पतला और झीना सा पजामा उतारने में भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि मैं स्वयं भी तो चुदना चाह रही थी ... वो भी पूरी नंगी हो कर, मस्ती से शरीर को उसके हवाले करके ... अब हम दोनों कुछ ही पलों में पूरे नंगे थे। मेरा दिल फिर से लण्ड के चूत में घुसने के अहसास से धड़क उठा ... उसने मुझे अपनी बाहों में कस कर ऊपर उठा लिया, और अब ... ... मैंने भी शरम छोड़ दी ... अपनी दोनों टांगे उसकी कमर से लपेट ली। उसका लण्ड मेरी गाण्ड पर फिर से छूने लगा। उसने मुझे बिस्तर पर पटक दिया। मैंने उसे झटके से पलट कर नीचे कर दिया और उस चढ़ बैठी और अपनी चूंचियाँ उसके मुख में ठूंस दी।
"मेरे सुनील ... मेरा दूध पी ले ... जरा जोर से चूस कर पीना ... !" मैंने उसके बालों को जोर से पकड़ लिया और चूंचियां उसके मुँह में दबाने लगी। उसका मुख खुल गया और मेरे कठोर निपलों को वो चूसने लगा।
मेरा हाल बुरा होता जा रहा था। चूत बेहाल हो चुकी थी और लण्ड लेने को लपलपा रही थी। पानी की बूंदें चूत से रिसने लग गई थी। लण्ड को निगलने के लिये चूत बिलकुल तैयार थी।
उसने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ भींच लिये। मेरी चूत के आस पास उसका लण्ड तड़पने लगा। मैं थोड़ा सा नीचे सरक गई ... और लण्ड को चूत के द्वार पर अड़ा लिया। अब देर किस बात की बात की ... उसके लण्ड ने एक ऊपर की ओर उछाल मारी और मेरी चूत ने उसके लण्ड को लीलते हुये, नीचे लण्ड पर दबा दिया ... फ़च की आवाज के साथ भीतर तक रास्ता बनाता हुआ जड़ तक बैठ गया।
मैंने अपनी चूंचियाँ उसके मुख से निकाली और अपने होंठ से उसके होंठ दबा लिए।
"आह्ह्ह्ह् ... ठोक दिया ना ... ईह्ह्ह्ह्ह ... साला अन्दर मुझे गुदगुदा रहा है !" मुझे चूत में उसके लण्ड का मीठा मीठा अहसास होने लगा था।
"मुझे भी भाभी ... आपका जिस्म कितना मस्त है चोदने लायक ...! " उसके मुँह से चोदना शब्द बड़ा प्यारा लगा। मुझे लगा कि सुनील मुझसे इसी भाषा में मुझसे बोले ...
पति के सामने ये सब नहीं कह सकते थे ना। सो मैंने भी जानकर ऐसी भाषा प्रयोग की।
"तेरा लण्ड भी सॉलिड है ... मेरी गाण्ड भी कितनी प्यारी मारी थी ... सुनील !"
मैं उसके लण्ड पर अपनी चूत मारने लगी। लण्ड बहुत ही प्यारी रग़ड़ मार रहा था। मुझे चूत घर्षण करते चुदाने में आनन्द आ रहा था। कुछ देर ऐसे ही चुदने के बाद मुझे जाने क्या लगा कि मैं उस के ऊपर सीधी बैठ गई और धच से उसके लण्ड पर चूत मारी और खुद ही चीख पड़ी ... भूल गई थी कि उसका लण्ड मेरे पति से पूरे एक इन्च अधिक लंबा था। वो तो मेरी बच्चेदानी से जोर से टकरा गया था। पर दर्द के साथ बहुत ही जोर का आनन्द भी आया।
" सुनील ... उईईईईई चुद गई, तेरे लण्ड का तो बहुत मजा आ रहा है ... तू भी नीचे से मार ना ... चोद दे राजा ... मेरी चूत को फ़ाड़ दे ... !"
"भाभी ... मेरा लण्ड भी तो चुद गया ... आह्ह आपकी प्यारी चूत ... मादरचोद इस चूत को चोद डालूँ ... "
"तेरी मां की चूत ... भेन चोद ... तू मुझे आज चोद चोद कर निहाल कर दे ... !" मैं गालियां बोल बोल कर अपनी मन की भड़ास निकाल रही थी। मेरे दिल को ऐसा करने से बहुत सुकून आ रहा था। मैंने कुछ रुक कर फिर से ऊपर से चूत को फिर से जोर से मारी ... एक नया और सुहाना मजा ... लम्बे लण्ड का ... फिर तो ऊपर से धचा धच लण्ड के ऊपर अपने आप को पटकते चली गई ।
" आप गालियाँ देती हुई बहुत प्यारी लग रही हैं ... आजा अब मैं तेरी मां चोद देता हूँ ... भोसड़ी की ... रण्डी ... कुतिया ... फ़ुड़वा दे अपनी भोसड़ी को ... दे चूत ... चुदवा ले मस्त हो कर ... !"
"मेरे प्यारे हरामी ... मादरचोद ... मेरी भोसड़ी चोद दे ... बस अब मुझे नीचे दबा ले और साली चूत की चटनी बना दे ...! " कहते हुये हम दोनों ने पलटी मार ली और वो मेरे ऊपर सवार हो गया। उसकी कमर, मैंने सोचा भी नहीं था, ऐसी जोर जोर से चलने लगी, कि मुझे आनन्द आ गया। मैं तबियत से चुदने लगी।
“हाय मेरे चन्दा, चोद दे मुझे ... राजा ... मेरी फ़ुद्दी को मसल डाल ... तेरा लौड़ा ... तेरी मां की ... चूत फ़ाड़ दे मेरी ... !” मैं अनाप शनाप गालियाँ देकर चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी।
“आह, मेरी रानी ... तेरी चूत का चोद्दा मारूँ ... भोसड़ी की मदरचोद ... चुदा ले जी भर के ... मेरी कुतिया ... छिनाल ... साली रण्डी ... आह्ह्ह्हऽऽ !” उसकी प्यारी सी मीठी गालियाँ जैसे मेरे कानो में शहद घोल रही थी, मेरे शरीर में तरावट आने लगी, सारा जिस्म मीठे जहर से भर गया। लग रहा था मैं कभी ना झड़ूँ ... बस जिन्दगी भर चुदाती ही रहूँ ... ये मजा पति की चुदाई से अलग था ... कुछ जवानी का अल्हड़पन ... थोड़ा सा जंगलीपना ... मीठी मीठी गालियोँ की मीठी चुभन ... मैंने भी आज जी खोल कर सारी गन्दी से गन्दी गालियाँ मन से निकाली ... और एक जबरदस्त सुकुन महसूस किया ... ।
पर ये आनन्द कब तक बरकरार रहता ...! मेरी चूत और जिस्म जिस तरह से रगड़े और मसले जा रहे थे ... उसका असर चूत पर ही तो हो रहा था। मेरा जिस्म ऐंठने लगा और आनन्द को मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकी ... मेरी चूत जोर से झड़ने लगी। मेरी चूत में लहरें उठने लगी ... तभी सुनील ने मेरे ऊपर अपने आपको बिछा लिया और लण्ड को चूत में भीतर तक दबा लिया। उसके कड़कते लण्ड ने मेरी बच्चादानी को रगड़ मारा ... और चूत में उसका वीर्य छूट पड़ा। वो अपने लण्ड को बार बार वीर्य निकालने के लिये दबाने लगा। वीर्य से मेरी चूत लबालब भर चुकी थी। वो निढाल हो कर एक तरफ़ लुढ़क पड़ा। मैंने भी मस्ती में अपनी आंखें बन्द कर ली थी। सारा सुख और आनन्द अपने में समेट लेना चाहती थी।
रात के बारह बजने को थे ... मैंने अपनी एक टांग सुनील की कमर में डाल दी और जाने कब मेरी आंख लग गई। हम दोनों नंगे ही लिपटे हुये सो गये।
मेरी आंख सुबह ही खुली। उजाला हो चुका था। सुनील सो रहा था। मैंने उसके लण्ड को और उसके आण्ड को सहलाना शुरू कर दिया। वह नींद में सीधा लेट गया।
उसके लण्ड में तनाव आने लगा था। उसकी नींद भी उचटती जा रही थी। अब उसका लण्ड पूरा खड़ा हो गया था ... मैं धीरे से उठ कर दोनों पांव इधर उधर करके उसके लण्ड के पास सरक आई। मैंने अपनी चूत के दोनों पटो को खोला और उसके लाल सुपाड़े पर रख दिया। मेरी गुलाबी चूत और उसका गुलाबी सुपाड़ा, लगता था कि दोनों एक दूजे के लिये ही बने हैं। मैंने सुपाड़ा अपनी चूत में डाल कर थोड़ा सा दबाव डाल कर उसे भीतर समा लिया। फिर सुनील पर झुकते हुये उस पर लेट गई। चूत को और दबा कर लण्ड को भीतर तक समेट लिया। सुनील जाग उठा था।
उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे चिपका लिया। मैं उसे चूमने लगी। उसकी कमर अब हौले हौले नीचे से चलने लगी और अपनी कमर भी ऊपर से चूतड़ दबा दबा कर मैं चलाने लगी। मैं फिर से चुदने लगी ... एक दूसरे में समाये हुये फिर से आनन्द में भर उठे ... मैंने झुक कर उसकी गर्दन के पास अपना चेहरा छुपा लिया और अपनी जुल्फ़ों को उसके चेहरे पर बिछा दिया, और आंखे बंद करके चुदाई का मधुर आनन्द लेने लगी ... । हम दोनों नंगे जिस्म की रगड़ का मद भरा अनोखा आनन्द लेने लगे ...
पाठको से भी मेरा निवेदन है कि उन्हें भी जब चुदाई का ऐसा सुनहरा मद भरा मौका मिले तो उसका लुफ़्त नजाकत से पूरा पूरा उठाईये ... क्योंकि ऐसे सुनहरे मौके जिन्दगी में कम ही आते हैं ... शादी-शुदा को दूसरों से चुदाने का कोई हक नहीं है ऐस ना सोचें ! ... यह तो बस दो पल का मधुर आनन्द है ... किसी को पता भी नहीं चल पायेगा ... ये छोटे छोटे पल ही आपकी जिन्दगी की खुशी हैं ... ये आपको भविष्य में भी सोच सोच कर गुदगुदाती रहेंगी ...
आपकी नेहा
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