ईश्वर ही एक ऐसी वस्तु है जिसे हम बिना जाने
प्रेम करते हैं। यदि ऐसा होता है तो इससे अधिक
कोई कामना नहीं रहती। भक्तियुक्त मनुष्य कहता है,
"हे प्रभु! मुझे धन-दौलत, मान-प्रतिष्ठा, सुख-शान्ति,
स्वास्थय अथवा अन्य कुछ भी नहीं चाहिये।
मुझे अपने कमलरूपी चरणों की पूर्ण भक्ति दो।"
(श्री रामकृष्ण )
~~~~~