एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी के मुताबिक मुख्य निशाने, जर्मन बेकरी से थोड़ी दूर पर स्थित यहूदी केंद्र खबाद हाउस और ओशो आश्रम थे, लेकिन वहां कड़ी सुरक्षा को देखकर आतंकियों ने इरादा बदल दिया। आईबी के अधिकारी पुणे ब्लास्ट को मुंबई हमलों के आरोपी फहीम अंसारी के वकील शाहिद आजमी की मुंबई के कुर्ला इलाके में हुई हत्या के बदले की कार्रवाई के रूप में भी देख रहे हैं।
दिल्ली पुलिस की पूछताछ में शहजाद ने बताया कि बड़े शहरों में कड़ी चौकसी को देखते हुए आईएम जैसे आतंकी गुट अब पुणो और कानपुर जैसे बी ग्रेड शहरों को निशाना बनाने की साजिश रच रहे हैं। इससे पहले, आईएम ने अजमेर, बेंगलुरू और वाराणसी में ब्लास्ट किए थे।
बीते चार साल में आधा दर्जन से ज्यादा धमाके कर चुका आईएम ढाई सौ लोगों की बलि ले चुका है। गुट ने सबसे बड़ा धमाका अहमदाबाद में किया था, जिसमें 55 लोग मारे गए थे। उसने दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरू, बनारस, लखनऊ और फैजाबाद में भी धमाके किए हैं। गुट की कमान पाक में बैठे कोलकाता के आमिर रजा के हाथों में है। वह 2006 में पाक भाग गया था। धमाके के बाद गुट इसके फुटेज पाक भेजें जाते हैं और तबाही के हिसाब से भुगतान होता है ।
कानपुर. पुणे ब्लास्ट के लिए जिम्मेदार इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) का ट्रेनिंग बेस उत्तरप्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर है। खुफिया एजेंसियों को शक है कि ब्लास्ट के तार इस शहर से जुड़े हो सकते हैं। हाल ही में पीओके में हुए जमात-उद्-दावा के नेताओं ने पुणो, इंदौर और कानपुर पर आतंकी हमले की चेतावनी दी थी। इसी के मद्देनजर कानपुर की महत्वपूर्ण इमारतों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है और पुणो धमाके के तार कानपुर में आईएम की स्लीपर सेलों से मिलाने के प्रयास स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसियां कर रही हैं। खुफिया सूत्रों के अनुसार कुछ समय पहले तक कानपुर सिमी व आईएसआई का गढ़ हुआ करता था।
सिमी की गतिविधियां तो फिलहाल बंद हैं, लेकिन आईएसआई यहां से अब भी ऑपरेट कर रही है। साथ ही, करीब दो साल से आईएम भी यहां पर सक्रिय है। सूत्रों के मुताबिक, उसने अपना पूरा ट्रेनिंग कैंप यहां बना रखा है और देश में तबाही फैलाने के तरीके भी यहीं ईजाद कर रहा है। वर्ष 2000 में देशभर में हुए सिलसिलेवार धमाकों में इस्तेमाल प्रेशर कुकर बम आईएसआई ने यहीं तैयार करवाया था। आईएम के लिए 2005 में साइकल बम भी यहां के कुछ खास इलाकों में बना था। इसके जरिए वाराणसी, गोरखपुर और लखनऊ में भीषण तबाही मचाई गई थी।
आईबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अमेरिका से संबंधों के कारण कानपुर आईआईटी आतंकियों के निशाने पर पहले से है। साथ ही यहां की ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों, एचएएल, आईओसी डिपो पर भी लंबे समय से खतरा मंडरा रहा है। हाल ही में आईएम आतंकी शहजाद भी इस बात का खुलासा कर चुका है।
इंदौर. पुणे ब्लास्ट के पीछे इंडियन मुजाहिदीन के महाराष्ट्र मॉडच्यूल के कथित कमांडर अब्दुल सुभान उर्फ तौकीर का नाम आ रहा है। इंदौर और आसपास के जिलों से तौकीर के तार जुड़े होने की सूचना प्रदेश के खुफिया विभाग व एटीएस के पास लंबे समय से है। समझा जाता है कि उसी ने क्षेत्र में आतंकी नेटवर्क फैलाया है।
मार्च 2007 में पुलिस कार्रवाई में सफदर नागौरी सहित सिमी के 13 पदाधिकारी व सदस्यों के पकड़े जाने के बाद इंदौर में आतंकी गतिविधियों का खुलासा हु्आ था। ये सब सिमी की कोर ग्रुप की बैठक में शामिल हुए थे। तौकीर को पुलिस कार्रवाई की भनक लगने से वह बैठक में नहीं आया। पिछले दिनों लखनऊ पुलिस के हत्थे चढ़े आतंकी शहजाद से मप्र एटीएस के अधिकारियों ने वहां जाकर पूछताछ की की थी। उसने बताया था कि दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर मे मारे गए आतंकी आतिफ से उसने इंदौर में धमाके की साजिश के बारे में सुना था।
इसके पूर्व 1999 में सिमी ने शहर में संविधान के विरोध में मार्च निकाला था, जिसमें 95 लोग शामिल हुए थे। पुलिस इन्हीं लोगों पर निगाह रखती रही है। 2001 में सिमी पर पाबंदी लगने के बाद इनमें से 28 लोग सक्रिय पाए गए थे, जिनमें भोपाल में पकड़ा गया सिमी का प्रदेश प्रमुख इमरान अंसारी भी शामिल है। जिला अध्यक्ष अकबर बेग पर रासुका के तहत कार्रवाई हो चुकी है। देश में जब भी आतंकी हमला होता है, पुलिस इन्हीं 95 लोगों की चेकिंग कर संतुष्ट हो जाती है। जबकि खुफिया विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यदि सिमी की आड़ में इंडियन मुजाहिदीन कोई वारदात करने की फिराक में है तो वह नए चेहरों का इस्तेमाल करेगा ।
आजमगढ़ (विजय उपाध्याय). पुणे बम धमाके के बाद आजमगढ़ का संजरपुर गांव भी सहम गया है। 19 सितंबर 2008 में नई दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद आजमगढ़ के इस अनजाने गांव ने पूरे देश को चौंका दिया था। अकेले इसी गांव के आठ परिवारों के नौ लड़के बाटला हाउस कांड और दूसरे बम धमाकों के आरोपी है। पांच लड़के अभी भी फरार है। जिन पर दिल्ली पुलिस ने ईनाम घोषित कर रखा है। एनकाउंटर में मारे गए दोनों लड़के आतिफ और साजिद इसी संजरपुर गांव के थे।
बाटला हाउस कांड के बाद इंडियन मुजाहिदीन का सदस्य होने के आरोप में पकड़े गए सैफ के पिता मोहम्मद शादाब का कहना है कि पुणो की घटना विदेशी साजिश है। इसकी जांच होनी चाहिए। सपा के जिला उपाध्यक्ष रहे मोहम्मद शादाब का दूसरा बेटा डॉ. शाहनवाज इस मामले में वांछित है। फरार लड़कों पर 5-5 लाख का ईनाम रखा गया है। बाटला हाउस कांड के पहले बीनापार से गिरफ्तार किए गए अबुल बशर पर 44 मुकदमे किए गए हैं।
शिबली नेशनल कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर डॉ. इकबाल बताते हैं कि आतिफ के साथ अन्य लड़कों को भी फंसा दिया गया। हमें किसी का विरोध नहीं करना है। हमें केवल न्याय चाहिए। बाटला मामले के एक आरोपी शहजाद को एक फरवरी को उत्तरप्रदेश पुलिस ने आजमगढ़ के खालिसपुर गांव से गिरफ्तार किया था। उसके बाद उसे दिल्ली पुलिस को सौंप दिया गया। दिल्ली में 13 सितंबर, 2008 को पांच जगह हुए। ब्लास्ट के बाद 19 सितंबर, 2008 को बाटला हाउस में मुठभेड़ हुई थी। इसमें दो आतंकी मारे गए थे और एक पकड़ा गया था। इसी मुठभेड़ में स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे, जबकि जुनैद और शहजाद चकमा देकर फरार हो गए थे।
आंतरिक सुरक्षा के इस ढांचे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) की भी भूमिका होती है। वह प्रधानमंत्री को नियमित रूप से देश की आतंरिक व बाहरी सुरक्षा को उत्पन्न चुनौतियों की जानकारी देता है। वह सामरिक मुद्दों पर निगाह रखता है। बाहरी खुफिया एजेंसी रॉ और आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी खुफिया एजेंसी आईबी सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करने के बजाय एनएसए को रिपोर्ट करते हैं। एनएसए सभी खुफिया एजेंसियों में तालमेल बिठाने का काम करता है। उसे ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमेटी, नेशनल टेक्नीकल रिसर्च आर्गनाइजेशन और एविएशन रिसर्च सेंटर रिपोर्ट करते हैं। एनएसए की मदद के लिए एक डिप्टी एनएसए होता है। एनएसए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का सदस्य होता है और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय का काम भी देखता है।
हकीकत लेकिन इसके ठीक उलट है। केंद्र और राज्य सरकारों की गुप्तचर एजेंसियों के बीच तालमेल तो दूर एक ही राज्य की विभिन्न एजेंसियों के बीच ही सूचनाएं साझा नहीं की जातीं। एंटी टेरेरिस्ट फोर्स और स्पेशल टास्क फोर्स जैसी एजेंसियां ही आपस में सूचनाएं नहीं बांटती। केंद्र और राज्य की ्रुप्तचर एजेंसियों के बीच तालमेल तो और भी कम है। इसका मुख्य कारण एजेंसियों के बीच श्रेय लेने की होड़ है।
और तो और सेना के तीनों अंगों, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और बीएसएफ जैसे अर्धसैन्य बलों के पास अपनस इंटेलीजेंस नेटवर्क होता है। उनके बीच शुभकामनाओं का आदान-प्रदान तो होता है लेकिन सूचनाओं का नहीं। यही हाल एक ही क्षेत्र में काम करने वाली नौसेना, कोस्ट गार्ड, मरीन पुलिस जैसे एजेंसियों का है। आतंक का मुख्य हथियार है लोगों को चकित कर देने और भयभीत कर देने का माद्दा। जबकि गुप्तचर एजेंसियों की जिम्मेदारी है आतंकी हमला होने से पहले ही उसका सुराग लगा लेना और उसे विफल कर देना।
हमारे देश में हर हमला होने के बाद केंद्रीय गुप्तचर एजेंसियां गर्व से घोषणा करती हैं कि हमने तो राज्य सरकार को इसके बारे में पहले ही सूचना दे दी थी। पुणो के मामले में भी कुछ अलग नहीं हुआ। इंटेलीजेंस ब्यूरो ने जर्मन बेकरी में हुए धमाके के एक घंटे के अंदर ही दावा किया कि उन्होंने हमले की पूर्वसूचना दे दी थी। महाराष्ट्र के गृहमंत्री छगन भुजबल ने स्वीकार किया कि आईबी ने पूर्वसूचना तो दी थी लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि उस सूचना में कुछ भी स्पेसिफिक नहीं था। सूचना यह थी कि महाराष्ट्र के कुछ बड़े शहरों में आतंकवादी हमले की संभावना है। कृपया हाई एलर्ट की घोषणा करें।
मुंबई में हुए आतंकी हमले से सबक लेते हुए केंद्र सरकार ने पिछले एक साल में कुछ कदम उठाए जिससे कि किसी संभावित हमले की पूर्व चेतावनी मिल सके और उसका मुकाबला बेहतर तरीके से हो सके।
इसके लिए चार महानगरों में नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के रीजनल सेंटर स्थापित करना, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन एक नेशनल इंवेस्टीगेटिव एजेंसी (एनआईए) की स्थापना और इंटेलीजेंस सूचनाओं के बारे में बेहतर तालमेल के लिए इंटेलीजेंस ब्यूरों के तहत एक मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) बनाया गया है।
इसकी शाखाएं लगभग सभी राज्यों की राजधानियों में खोली गई हैं। इसके अलावा एक ज्वाइंट टास्क फोर्स आन इंटेलीजेंस (जेटीएफआई) भी स्थापित की गई है। इन सभी एजेंसियों का काम गुप्तचर सूचनाओं का निरंतर आदान प्रदान करना है।