दोहे और उक्तियाँ !!


जीवन क्या  है? 

क्या केवल सांस लेना, भोजन को पचाना, मलमूत्रादि

वेगों का त्याग करना, शरीर रचना और निर्माण के अन्य कार्यों का होना

ही जीवन की परिभाषा का पूरक है?

 क्या केवल विचार करना, योजनाएं बनाना, विमर्श करना, नाम-यश आदि के 

लिए प्रयत्न करना ही जीवन की सिद्धि का बोधक है? क्या सन्तति-प्रजनन से 

जीवन का अर्थ स्पष्ट होता है?

वैज्ञानिकों और नृतत्त्व के वैज्ञानिकों का जीवन-विषयक दृष्टिकोण

अलग-अलग है।

 दार्शनिकों ने जीवन को दूसरे दृष्टिकोण से आँका है।

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