दोहे और उक्तियाँ !!


आत्मचेतना का अर्थ यह नहीं कि हम भौतिक जीवन की अवहेलना करें।

पदार्थ तो परमात्मा का ही व्यक्त स्वरुप है। जिस तरह आग और तेज, हिम और शीतलता, पुष्प और सौरभ तथा शक्ति और शक्तिमान अभिन्न हैं, उसी प्रकार पदार्थ और उसके अन्दर विद्यमान शक्ति को अलग नहीं किया जा सकता।

 इस भौतिक लोक का जीवन आत्मचेतनामय जीवन का उपकरण  है। 

संसार से परमोच्च शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। 

पाঁच तत्व हमारे गुरु हैं। 

प्रकृति की गोद में पलकर ही मनुष्य अच्छी शिक्षाएं प्राप्त कर सकता है। 

आत्मचेतना की प्राप्ति के लिए जिन-जिन गुणों से व्यक्ति को सुसज्जित होना पड़ता है, उन सबका उपार्जन इसी भौतिक लोक में किया जा सकता है। 

गीता का भी यही उपदेश है कि संसार में रहते हुए आत्म-प्राप्ति की चेष्टा करें।

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