दोहे और उक्तियाँ !!


जीवन दो प्रकार का होता है, यथा भौतिक जीवन और चेतनात्मक जीवन।


नृतत्त्व-शास्त्री तथा देहविज्ञानवादियों का कहना है कि सोचना, अनुभव करना, जानना, संकल्प करना, पचाना, मलादि वेगों का त्यागना, रक्तादि का संचरण, स्खलन आदि क्रियाओं से ही जीवन है। परन्तु इस प्रकार का जीवन शाश्वत नहीं है।

इस जीवन में खतरे, दुःख, चिन्ताएঁ और घबराहट, व्याधियां पापादि अनेकों प्रतिक्रियाएं व्याप्त रहती हैं।


अतः जिन महात्माओं ने इन्द्रियों और मन पर संयम स्थापित कर, त्याग, तपस्या और वैराग्य-साधना कर आत्ममय जीवन बिताया, उनको यह कहते तनिक भी झुंझलाहट नहीं हुई कि आध्यात्मिक जीवन ही शाश्वत है, जिससे पूर्ण शांति, परम् आनन्द, सच्चा सुख और संतुष्टि की प्राप्ति होती है।



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