विज्ञान और धर्म, राजनीति और धर्म - यह सभी अभिन्न हैं।
साथ-साथ ही इनका विकास होता है।
राजनीति ही आध्यात्मिक बीज की प्रफुल्लता के लिए धरती तैयार करती है।
यदि देश की आर्थिक स्थिति सशक्त न हो,
राजनीतिक हालत अच्छी न हो, शान्ति का माहोल न हो,
जब लोगों के मन ही उद्विगण हों और जीवन की जरुरी वस्तुओं जैसे कि
प्रयाप्त आहार और कपड़ा आदि का अभाव हो, तो
आध्यात्मिक प्रचारक किस प्रकार अपने उपदेशों को समाज में प्रसारित कर सकेंगे।
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