वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र यादव ने केदारनाथ के निर्णय का सम्मान और समर्थन करते हुए यहां तक कह दिया कि शलाका सम्मान देने की परंपरा ही समाप्त कर देनी चाहिए क्योंकि अब इसकी गरिमा गिर चुकी है। अगर अकादमी कृष्ण बलदेव वैद को फिर से यह सम्मान देती है तो इतनी किरकिरी के बाद शायद वह इस सम्मान को न लें।
यादव ने कहा कि इस तरह से किसी कथाकार को अपमानित करना देश के साहित्यकारों को रास न आया। अकादमी की इस हरकत से वैद को शलाका सम्मान से नामित करने वाली समिति पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। इस पूरे प्रकरण के पीछे वैद को शलाका सम्मान से वंचित किए जाने का मामला है। दरअसल, अकादमी ने पहले तो वैद को वर्ष 2008-09 के शलाका सम्मान के लिए नामित किया फिर अचानक उनका नाम काट दिया गया और किसी को भी यह सम्मान नहीं दिया गया।
अकादमी के सम्मान को ठुकराने वाले साहित्यकारों में एक पंकज सिंह ने बताया कि समिति द्वारा लिए गए निर्णय की गरिमा की परवाह किए बगैर अकादमी ने पूरी तरह से मनमानी करते हुए एक वरिष्ठ कथाकार को अपमानित करने से नहीं चूका।
सूत्रों के अनुसार वरिष्ठ लेखक कृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान से इसलिए वंचित किया गया क्योंकि उनके लेखन में कथित रूप से अश्लीलता थी। लेकिन आलोचक पुरूषोत्तम अग्रवाल का कहना है कि किसी लेखक की रचना का कुछ अंश पढ़कर इस तरह के आरोप लगाना कतई उचित नहीं है। पुरस्कार लेखक के समग्र रचनाकर्म को आधार बना कर दिया जाता है।
इतना ही नहीं, केदार नाथ सिंह के सम्मान के ठुकराए जाने के बाद कई अन्य साहित्यकारों ने भी अकादमी की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाते हुए सिंह की कतार में खड़े हो गए। इनमें पुरूषोत्तम अग्रवाल, रेखा जैन, पंकज सिंह, गगन गिल और विमल कुमार का नाम सामने आया है। रेखा जैन को वर्ष 2009-10 का बाल साहित्य सम्मान, गगन गिल और पंकज सिंह को वर्ष 2008-09 का साहित्यकार सम्मान एवं विमल कुमार को साहित्य कृति सम्मान के चुना गया है।
लेकिन इन साहित्यकारों ने केदार नाथ सिंह के सुर में सुर मिलाते हुए सम्मान को लेने इनकार कर दिया है। पंकज सिंह का कहना है कि उनका मकसद पुरस्कार का अपमान करना नहीं है लेकिन जब एक वरिष्ठ साहित्यकार का अपमान हो रहा हो तो सम्मान को लेना दिल गवारा नहीं करता।
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि अन्य साहित्यकारों के साथ इस मुद्दे पर एकजुटता प्रदर्शित करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार प्रियदर्शन ने भी साहित्य कृति सम्मान नहीं लेने की घोषणा की है। हिन्दी साहित्य अकादमी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब केदारनाथ सिंह सहित कुल सात साहित्यकारों ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया।
साहित्यकार विमल कुमार के अनुसार महज अश्लीलता को बहाना बना कर किसी साहित्यकार को अपमानित करने को कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। विमल कुमार ने माना कि कठघरे में खड़े हिन्दी साहित्य अकादमी की इस मसले पर खामोशी और साहित्यकारों का इसके विरोध में लामबंद होना साहित्य जगत के लिए अच्छी बात नहीं है और पुरस्कारों के चयन में राजनीति की बात अब खुल कर सामने आ गई है जिससे अकादमी को निश्चय ही एक बड़ा झटका लगा है।